क्या आप को पता हे? गरुड़ सांपो के भाई हे.

आप लोग भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ के बारे में जानते ही होगे, कहा जाता हे की गरुड़देव तीनो लोको में सबसे शक्तिशाली प्राणी हे. और इसीलिए भगवान विष्णु ने इन्हें अपना वाहन बना लिया था.
      आज के blog में हम आपको यही बताएँगे की गरुड़देव कोण थे और कैसे वो भगवान विष्णु के वाहन बने थे.
गरुड़देव महर्षि कश्यप के बेटे थे, महर्षि कश्यप की कई पत्निया थी. उनमे से दो तो दक्ष प्रजापति की पुत्रिया थी, विनीता और कद्रू. पर ये दोनों सगी बहने होकर भी एकदूसरे से शत्रुओ की तरह बैर रखती थी.
एकबार महर्षि कश्यप उन दोनों पर प्रसन्न हुए और दोनों को कुछ मांगने के लिए कहा
तो कद्रू ने उनसे १००० शक्तिशाली पुत्रो को जन्म देने की इच्छा प्रकट की थी, जब विनीता ने ये सुना तो उसने भी कश्यपजि से सिर्फ २ ऐसे पुत्रो की इच्छा प्रकट की, जो कद्रू के १००० पुत्रो से भी ज्यादा बलवान और पराक्रमी हो.


पुत्रो की इच्छा व्यक्त करने के बाद दोनों बहनो को गर्भ धरना हो जाती हे. आश्चर्य की बात ये होती हे की दोनों बालक को जन्म न देते हुए अंडे देती हे. समय आनेपर कद्रू ने १००० अंडे दिए और विनीता ने २ अंडे दिए. उन अन्डो को दोनों ने गर्म बर्तन में रख दिया. कुछ वर्षो बाद जब कद्रू के अंडे फूटे तो शेषनाग और वासुकी के साथ १००० बलशाली नागो ने जन्म लिया परन्तु विनीता के २ अंडे काफी समय होने के बाद भी नहीं फूटे थे. अपने पुत्रो को जन्म लेने में देर होती देख विनीता ने एक अंडे को अपने हाथो से ही फोड़ डाला, उसने देखा की उस अंडे में जो शिशु था वो एक पक्षी था, पर उस शिशु का ऊपर का आधा ही शारीर पुष्ट हो पाया था और निचे का शरीर अभी भी अपरिपक्व ही था, उस शिशु ने क्रोध में आकर अपनी माता विनीता का श्राप दिया की " अपनी जिस बहन की बराबरी करने हेतु तूने मुजे अधूरे शरीर का बना दिया हे, तू हमेशा उसकी दासी बन कर रहेगी"
अपने ही पुत्र से श्राप पाकर विनीता काफी दुखी होगई थी, शिशु को भी अपनी माता का दुःख देखकर उनपे दया आगई थी, तब उसने ये कहा की "अगर तुमने मेरे दुसरे भाई को अंगहीन न किया, तो वही तुम्हे मेरे इस श्राप से मुक्त करेगा"

इतना कह कर वो शिशु आकाश में उड़ गया, और बाद में भगवन सूर्य के रथ का सारथि बन गया. विनीता के उस शिशु का नाम अरुण था. कहते हे की प्रातःकाल में सूर्योदय के समय की लालिमा विनीता के उसी पुत्र अरुण की होती हे. और इन्द्रजीत ने जब प्रभु राम और लक्ष्मण को नागपाश में जकड लिया था तब इसी अरुण ने गरुड़ के कहने पर उनकी मुक्तता सांपो से की थी.
अरुण से श्राप मिलने के बाद विनीता ने दुसरे अंडे को अपने आप फूटने का इन्तजार किया था. और समय आने पर जब वो अंडा फुटा तो उसमे से गरुड़ नामक महाबलशाली पक्षी उत्पन्न हुवा. गरुब बड़ा ही बलवान और पराक्रमी था, उसे जब ये पता चला की उसकी सौतेली माँ कद्रू ने अपने शक्तिशाली पुत्रो के साथ मिलकर धोके से उसकी मा विनीता को दासी बना लिया हे. तब गरुड़ ने कद्रू और उनके पुत्रो से कहा की "में तुम्हारे लिए ऐसा क्या करू ? जिससे तुम मेरी माँ को अपनी दास्यता से मुक्त कर दो" तो नागो ने कहा की अगर तुम हमारे लिए स्वर्ग से अमृत ला दो, तो हम तुम्हारी माता को दास्यता से मुक्त कर देंगे.
कद्रू की सबसे शक्तिशाली संतान शेषनाग अपनी सौतेली माँ विनीता को दासी बनाने के विरुद्ध थे, इसीलिए वे सबकुछ छोड़कर गंधमादन पर्वत पर तपस्या करने चले गए थे
गरुड़देव ने अपनी माँ को दास्यता से मुक्त करने के लिए स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया था, और तब इंद्र सहित सभी देवताओ का गरुड़ के साथ युद्ध हुवा था. पर सारे देवता मिलकर भी गरुड़ को रोक नहीं पाते हे, और गरुड़ सबको हराकर अमृत लेकर चले जाते हे.
जब भगवान् विष्णु ने अमृत कलश ले जा रहे गरुड़ को देखा तो आश्चर्य में पड गए की, कैसे गरुड़ में अमृत पीकर अमर होने का जरा भी लोभ नहीं हे.
तब भगवन विष्णु गरुड़ के पास आगये और बोले "में तुमसे प्रसन्न हु, और तुम्हे वर देना चाहता हु"
तो गरुड़ ने कहा की" भगवान, आप मुझे अपनी ध्वजा में रखिये, और में बिना अमृत पिए अजरअमर हो जाऊ"
तब भगवान विष्णु ने तथास्तु कहा तब, गरुड़ ने भी विनती की आप मी मुझसे कोई वर मांग ले.
गरुड़ की ये बात सुनकर भगवान विष्णु ने कहा की " हमेशा के लिए तुम मेरा वाहन बन जाओ"
और तबसे गरुड़जि भगवन विष्णु के वाहन हे


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