क्या आर्य बाहरी थे ?? राखीगडी के कंकाल के राज !! Aryan Invasion Theory Exposed | क्या आर्य बाहरी थे ?? ये आर्य... होते कोण हे ? क्या द्रविड और आर्य सभ्यातये अलग हे. राखीगडी के उत्खनन से फिर से उछाले गये और सदियो से चलते आ रहे इस प्रश्न का उत्तर आज भी विज्ञान नही दे पाया हे. और शायद न ही जल्दी दे पायेगा.
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राखीगडी कंकाल और आर्य आक्रमण (Aryan Invasion)

राखीगडी मे मिले एक ४५०० हजार साल पुराने.. कंकाल के कूच दिनो पहले DNA sample का रिपोर्ट आ गया. और इस रिपोर्ट के अनुसार इस कंकाल के अंदर R1A1A नाम का एक जीन नही मिला जो की साधारण आर्यो मे होता हे. पर इस कंकाल के जीन हम दक्षिण भारतियो के जीन से मिलते हे. रिपोर्ट को पुरी तऱह पढे बिना सामान्य ज्ञान के रिपोर्टरो ने लंबेचौडे भाषण शुरू कर दिये हे और किसी भी हालात मे वे ये साबित करणे पर डे हे कि उत्तर भारत के बहुतांश लोग जो अपने आपको आर्य समझते हे वो आक्रमणकारी हे. और द्रविड मूलनिवासी हे, जिन्हें हराया गया.
चलो पहले इस रिपोर्ट को देखते हे.

रिपोर्ट के अनुसार इस कंकाल के DNA दक्षिण भारतीय DNA से मेल खाते हे, और इनमे R1A1 जीन नही मिला जो लगभग १७% उत्तर भारतियो मे पाया जाता हे. और साथही एक महत्वपूर्ण बात हे जो कोई बताने के लिए तैयार ही नहीं हे की DNA एक और प्रजाती से मेल खाया हे, और वो प्रजाती हे खेती करनेवाली इराणियन सभ्यता.
जीन लोगो को इतिहास के साथ साथ archeology कि एक साधारण समझ हे, उन लोगो को शायद ये पता होगा कि जिस सभ्यता को हम आज कि सिधू घाटी सभ्यता कहते हे वो सिर्फ एक सभ्यता नही थी ... वो दो सभ्यातये थी एक थी हरप्पा मोहेंजोदारो सभ्यता तो दुसरी थी मेहरगड-कालीबांगण सभ्यता... अगर आप कुछ कष्ट उठाये और हमने बताये हुए एन चारो स्थानों की रचना और बाकि चीजो को खुद परखे तो सत्य खुद ही जान पायेंगे. इन दोनों सभ्यताओ की रचना में बुनियादी अंतर हे.

Fake Aryan Invasion

आर्य आक्रमण सच या सदी का सबसे बड़ा झूट..?? (Aryan Invasion Truth Or Fake)

आर्यों ने आक्रमण किया हो ... या फिर ना भी किया हो... तब भी ऋग्वेद इस भूमि पर बना सबसे प्राचीन ग्रन्थ हे...
ऋग्वेद में एक युद्ध का वर्णन हे.. जब विश्वामित्र के साथ दास, द्रुह्यु, पुरु, और परसू जैसे १० राजघराणे थे. तो दूसरी और वशिष्ठ और सुदास का राज्य था. इन सभी के बिच एक युद्ध होता हे. इस युद्ध में १० राजा पराभूत होते हे. यहाँ एक बात याद रखिये ये सभी राजा भारतीय थे, क्योकि विश्वमित्र जो पराभुतो के संघ के नेता थे वे भी एक हिन्दू ही थे. जैसा की युद्ध का नियम होता हे जेता को भूमि मिलती हे तो पराभूत को भागना पड़ता हे इसी नियम के अनुसार कुछ राजा भारत से बाहर भागे तो कुछ भारत के अन्दर की तरफ ... दक्षिण में. उस वक्त ना जनसँख्या इतनी बड़ी थी न जमीन की कमी इसी कारन हारे हुए ये राजा जहा गए उन्होंने अपना राज्य बना लिया.

उदहारण के तौर पर द्रुह्यु राजाओ को गांधारी भी कहा जाता हे उन्होने अफगाणिस्तान मे अपने गांधार राजवंश कि स्थापना कि थी, तो भ्रीगु, पुरू और मत्स्य ये राजा भारत में अन्दर तक चले गए और कूच समय बाद अपना एक साम्राज्य खड़ा कर लिया था. इनमे से परसू लोग इराणतक चले गये और उन्होने वहा एक महान फारसी राजघराणे कि शुरुवात कि थी. तो दास राजघराणे ने इराण के उत्तर मे तुर्कमेनिस्तान मे अपना ठिकाण बनाया था. बचे हुये अलीना, अनु, भालन, पाणी ये राजघराणे और भी आगे गये ऐसा माना जाता हे.
ये सभी राजघराने हिन्दू थे, पर फिर भी इनमे काफी अंतर था. वर्तामन स्थिति में देखे तो जैसा की आजके कथित आर्य और द्रविड़ो के बिच में हे. हमने कथित इसलिए कहा क्योकि आर्य शब्द कभी भी जाती या समूहवाचक नहीं था... इसका अर्थ हे "अच्छा इन्सान"

R1A1A Vs LM20 DNA Group

४५०० साल पुराने जिस कंकाल के कारण आज हम बात कर रहे हे. उसका DNA इरानियन सभ्यता से और साथ ही साथ दक्षिण भारतीय सभ्यता से मिलता हे. अंग्रेज का "आर्य आक्रमण का सिधांत" कहता हे की आर्य लोग यूरोप के स्टेपी क्षेत्र से ईरान होते हुए भारत आये और उन्होंने द्रविड़ो को हराकर दक्षिण भारत भगा दिया. तो प्राचीन ईरानी सभ्यता में कैसे इस कंकाल के जिन मिले. पर एक और विशेष बात ईरानी लोगो के DNA में भी R1A1A नही हे... जो कि होणा चाहिये था.

अब बात करते हे आर्य DNA जिन R1A1 की. जो कथित तौर पर सिर्फ १७% उत्तर भारतीय आबादी में पाया जाता हे. अगर भारत का इतिहास उठा कर देख लोगो तो पता चल जायेगा. भारत पर अनेको बार बाहरी लोगो ने आक्रमण किये हे, जिनमे शक, कुषाण, हून ये मध्य आशिया की थी जहा मना जाता हे कि DNA के इस जीन कि शुरवात हुई. इन सभी जातियो को भारत ने सभ्य बना दिया थी. और इन जातियो के महानतम कुशाण सम्राट कनिष्क तक नर्मदा के नीचे उतार नाही पाये थे यांनी ये कबिले भारी संख्या मे कभी दक्षिण भारत तक पुहच नहीं सके. शक, हून, और कुशानो का पुरी तऱह से भारतीयीकरण हो चुका हे.. और कोई भी इन्हे अलग नही दिखा सकता.
इसके विपरीत आर्यों का आक्रमण कभी हुवा ही नहीं और ऋग्वेद के दश्राजन युद्ध के बाद दुनियाभर में हिन्दू धर्मविस्तार हुवा. और फैले हुए हिन्दू धर्म के निशान आज भी जगत की भाषाओ में दिखाई देते हे और यूरोपतक हिन्दू देवताओ के नामो के शिलालेख भी मिले हे, जिनमे वैदिक देवताओ के नाम अंकित हे.

अंग्रेजो का कोई प्राचीन और सभ्य इतिहास नहीं हे. और उनका जो भी प्राचीन इतिहास मिलता हे वो काफी ख़राब हे. जब पहलीबार अंग्रेजो ने हरप्पा-मोहनजोदड़ो-कालीबंगन-मेहरगड यानी सिन्धु घटी सभ्यता को खोजा तो उन्होंने white skin supremacy का स्थापित करने के लिए और प्राचीन भारतीय सभ्यता पर दावा ज़माने के लिए किया. उन्होंने भारतीय सभ्यता को इंडो-यूरोपियन या इंडो-आर्यन कहना शुरू कर दिया साथ ही उन्होंने संस्कृत को भी इंडो-यूरोपीय भाषा कहकर संबंध स्थापित किया.
सच तो ये हे, भारत में सदा ही एक से ज्यादा सभ्यताए रह रही थी. इनमे मतभेद थे, इन्होने एकदूसरे के साथ युद्ध भी लडे. एकदूसरे से रिश्तो से परहेज किया. पर एक सामान धागा इन्हें जोड़ता था.. वो था हिन्दू धर्म


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