हम सभी जाणते हे कि देवी
दुर्गा और महिषासुर के बीच ९ दिनो तक एक भयानक युद्ध हुवा और विजयादशमी के दिन मा
दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया, पर न के बराबर लोक महिषासुर राक्षस के जन्म के
बारे मी जाणते हे. आज हम इस राक्षस महिषासुर के जन्म कि कथा सुनायेंगे.
नमस्कार मित्रो स्वागत हे
आपका मिथक टीवी मे, हमारे सभी दर्शको को नवरात्री कि शुभकामानाये,
पुराणो से कहानिया शृंखला मे आज हम नयी कहाणी लेकर आये हे.
पुराणो से कहानिया शृंखला मे आज हम नयी कहाणी लेकर आये हे.
दानव कोण थे और कहासे आये
मित्रो प्रजापती दक्ष कि बहोतसी कन्याये थी, उन्मे से १३ कन्याओ का विवाह महर्षी कश्यप से हुवा था. महर्षी कश्यप एक ऋग्वेदीय ऋषी थे, और उनका सबसे पहला उल्लेख ऋग्वेद मे आता हे.इन १७ कन्याओ मी दनु भी शामिल थी, इसी दनु के पुत्र बाद मे दुनिया मे दानव कहलाये.
कश्यप ने दक्ष प्रजापति की 17 पुत्रियों से विवाह किया। दक्ष की इन पुत्रियों से जो सन्तान उत्पन्न हुई उसका विवरण निम्नांकित
है:
- अदिति से आदित्य (देवता)
- दिति से दैत्य
- दनु से दानव
- काष्ठा से अश्व आदि
- अनिष्ठा से गन्धर्व
- सुरसा से राक्षस
- इला से वृक्ष
- मुनि से अप्सरागण
- क्रोधवशा से सर्प
- सुरभि से गौ और महिष
- सरमा से श्वापद (हिंस्त्र पशु)
- ताम्रा से श्येन-गृध्र आदि
- तिमि से यादोगण (जलजन्तु)
- विनता से गरुड़ और अरुण
- कद्रु से नाग
- पतंगी से पतंग
- यामिनी से शलभ
रम्भ और करम्भ
दनु के बहोतसे दानव पुत्रो मेसे दो थे रम्भ और करम्भ. जब रम्भ और करम्भ जवान हुए पर फिर भी कई सालो तक ना तो रम्भ को कोई संतान हुयी और न हि करम्भ को... तब दोनो ने ये तय किया कि वे संतानप्राप्ति के लिए तपस्या आरंभ कर देंगे और वरस्वरूप कोई महान पुत्र मांग लेंगे.
रम्भ ने अग्नी मी अपनी
तपस्या शुरू कर दि तो करम्भ ने जल मे, जैसे हि इंद्र को इस बात का पता चला कि दो
दानव महान पुत्र प्राप्ती के लिये तपस्या कर रहे हे... उसने ये समझ लिया कि
आनेवाले वक्त मे शायद वो दानवपुत्र उसके सिंहासन को चुनोती दे सकता हे.
इंद्र ने तब छल से मगरमच्छ
का रूप लेकर करम्भ का जल मे हि वध कर डाला, इंद्र ने रंभ को
मारने का प्रयास भी किया पर अग्नि के होने के कारण वो उसे मार नही पाया. जब रम्भ को अपने भाई के मृत्यु के बारे में पता चला तो उसे बहोत
दुःख हुवा और तब वो तपस्या मेही स्वयं के प्राण लेने लगा तब आखिर में अग्निदेव को
उसके सामने खड़ा होना ही पड़ा.
रंभ ने तब कहा की "मुझे एक ऐसा बलशाली पुत्र चाहिए जो तीनो लोको पर राज करने के काबिल हो, और ब्रह्माण्ड
में शायद ही उसका कोई मुकाबला कर पाए साथ ही वो अपनी इच्छा के अनुसार रूप धारण कर
सके"
अन्गिदेव वर देकर कहा की " जिस भी
सुंदरी पर तुम्हारा मन आ जाए उसी से तुम्हे तुम्हारा पुत्र प्राप्त होगा"
महिषासुर का जन्म (Birth Of Mahishasura)
अग्निदेव से वरदान पाकर रंभ प्रसन्न होकर अपने राज्य की और निकल पड़ता हे, जाते वक्त जंगल मे एक महिषी यानी भैस को देखकर उसका दिल उस महिषी पर आ जाता हे. और तब उसने उस महिषी के साथ समागम किया, उसके वीर्य से वो महिषी गर्भ से रह गयी.
कुछ दिनों बाद एक भैसा उसी
महिषी पर आसक्त होगया और उसपर झपट पड़ा, रंभ ने जब ये देखा तो उसने उस भैसे पर हमला
कर दिया पर भैसा काफी ताकदवर था उस झपट में रंभ की मृत्यु होगई. पास ही से कुछ
यक्ष गुजर रहे थे, उन्होंने उस भैसे को भगा कर महिषी की रक्षा की... साथ ही वे रंभ का दाहसंस्कार भी करने लगे.
प्राणी होकर भी महिषी पतिव्रता थी और इसी कारण उसके मन में सती हो जानेकी भावना
जाग उठी. और वो रंभ की जलती चिता पर जा बैठी. पर तभी उसका प्रसव शुरू होगया और उस
जलती हुयी चिता पर एक बालक का जन्म हुवा, महिषी के गर्भ से निकलने कारन दुनिया उस बालक को महिषासुर नामसे जानने लगी.
महिषासुर मे मानव और महिषी दोनो के अंश होणे के
कारण वो अपने आप को जब चाहे तब मानव और एक भैसे मे बदलणे कि काबिलीयत रखता था, साथ
हि उसने ब्रम्हा से एक वर प्राप्त किया था "कि दुनिया का कोई भी पुरुष उसका
वध नही पायेगा"
रक्तबीज(Raktabij) का जन्म
महिषासुर के साथ ही महिषी ने एक और पुत्र को जन्म दिया... कहा जाता हे कि वो रम्भ का दुसरा जन्म था और जिसका नाम रक्तबीज राख गाय, इसी रक्तबीज को बाद मे ये वर मिला था कि उसके रक्त कि हर एक बुंद से एक नया रक्तबीज निर्माण होगा.
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