कर्ण का दिग्विजय Karna Vs Arjuna! बहोतसे लोगो को कर्ण के बारे में काफी कम जानकारी हे, उन्हें तो ये तक नहीं पता की कर्ण ने अपने मित्र दुर्योधन के लिए दिग्विजय किया था... पुरे विश्व को जितने में उसे १२ साल लगे... अर्जुन के साथ ५ पांडवो ने राजसूय यज्ञ के वक्त जो किया था ... वो अकेले राधेय ने किया था ...!!
इन १२ सालो में उसने विश्व के रथी, महारथियों को अपने सामने घुटने टेकने को मजबूर कर दिया था.

आज हम जो कहानी बताने जा रहे हे इसके बारे महाभारत के वनपर्व में लिखा हुवा हे.... सारी की सारी दशोदिशाओ को जितने के कारण कर्ण को दानवीर के साथ दिग्विजयी भी कहा जाता हे.
कहानी तब की हे जब पांडव वनवास में थे,
गन्धर्वो से हार जाने के कारन दुर्योधन काफी लज्जित महसूस कर रहा था, तब भीष्म ने कहा "दुर्योधन तुम्हे अकारण ही इस सूतपुत्रपर इतना भरोसा हे, क्या तुमने देखा नही ... ये भी तुम्हे छुड़ा नहीं पाया... और क्या अब भी तुम्हे इस की शक्ति पर उतनाही भरोसा हे"
तब दुर्योधन के मन के खयाल आया की वो क्यों न वैष्णव यज्ञ का आयोजन करे. वैष्णव यज्ञ वो यज्ञ था उसे दुनिया में सिर्फ भगवान् विष्णुने पूरा किया था... इस यज्ञ को पूरा कर दुर्योधन असीम कीर्ति हासिल करना चाहता था, जैसा की अश्वमेध यज्ञ पृथ्वी के सारे राजाओ को अधीन बनाकर पूरा किया जाता हे, उस से ज्यादा वैष्णव यज्ञ पृथ्वी, आकाश और पाताल इन तीनो लोको को जितने के बाद ही संपन्न माना जाता था. और इसी कारन सिर्फ भगवान् विष्णु ही इस यज्ञ को पूरा कर पाए थे.

अपने मित्र के इस यज्ञ को पूरा करने के लिए राधेय पूरब की और चल दिया, द्रुपद, अंग, वांग विदेह, कोसला जैसे शक्तिशाली राजाओ को परास्त कर उसने पूर्व पर विजय प्राप्त कर ली.
पूर्व के बाद अब उत्तर की बारी थी वह उसने भगदत्त और शल्य जैसे महारथियों को अपने तिरो से पानी पिलाकर अपनी अधीनता स्वीकार करवा ली. अगर आप भगदत्त के बारे में नहीं जानते तो जानले, महाभारत युद्ध में एक समय भगदत्त ने अर्जुन, भीम और अभिमन्यु को एकसाथ हराया था और भगदत्त के वैष्णवअस्त्र से अर्जुन की जान बचाने के लिए खुद भगवान् कृष्ण को बिच में आना पड़ा था.
अपनी दिग्विजय की यात्रा में कई महारथियों को हराया. आखिर में वो पश्चिम दिशा की और बढा, और देखते ही देखते उसने पश्चिम को भी जित लिया, जब वो द्वारका पोहचा तो भगवान् श्रीकृष्ण ने खुद दुर्योधन के वैष्णव यज्ञ के लिए उसे शुभकामनाये दी.

दसो दिशाओ को जितने वाले राधापुत्र की संपत्ति देखकर कुबेर भी शर्मा रहा था, दानवीर कर्ण ने ये पुरी संपत्ति हस्तिनापुर की प्रजा में बाँट दी. और साथ ही जीती हुई धरती दुर्योधन को अर्पण कर दी.


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