क्या आपको पता हे ? अर्जुन ने अपनी भाई युधिष्ठीर को जान मारणे के लिये हमला किया था | मित्रो हमारी अर्जुन और कर्ण शृंखला को आपने युट्युबपर काफी प्यार दिया हे, और सभीने इस सिरीज को काफी पसंद किया हे.. इसीकरण हम इस सिरीज को कथारूप मे अपनी website पार ला रहे हे.. आज इसी शृंखला में हम आपको महाभारत की एक कहानी बताएँगे "जब पार्थ ने अपने भाई धर्मराज युदिष्ठिर को मारने का प्रयास किया था.अगर आपको हमारे ये कथाये पसंद आई तो हमे कमेन्ट के जरिये बताये.

कहानी से पहले हम इस कथा का स्रोत बतादे, ये कहानी महाभारत के कर्ण पर्व मेसे ली गयी हे.
युद्ध का १७वा दिन था, कर्ण अब युद्ध में उतर चूका था... कर्ण ने अपने विजय धनुष से पहला दिव्यास्त्र चलाया .... भार्गावास्त्र ...भार्गावास्त्र के बारे में जानने के लिए ऊपर कार्ड्स पर क्लीक कर भार्गावास्त्र पर बने पुरे एपिसोड को देखिये.

जैसेही कर्ण भार्गावास्त्र को अवहित कर पांडवसेना पर चला देता हे, पांडवसेना में हाहाकार मच जाता हे, हजारो पांडव वीर मारे जाने लगते हे... किसी भी पांडव वीर के पास भार्गावास्त्र का जवाब नहीं था. तब सारे पांडव योद्धा अर्जुन की शरण में जाते हे.. वे उससे कहते हे "पार्थ, हमारी रक्षा कीजिये और कर्ण के चलाये भार्गावास्त्र को शांत कीजिये".

पार्थ के पास भगवान् परशुराम के दिए भार्गावास्त्र का कोई तोड़ न था. और कर्ण की धनुर्विद्या और विजय धनुष ने इस महँ अस्त्र को और भी भयानक और संहारक बना दिया था. भगवन कृष्ण जानते थे की, कौन्तेय इस अस्त्र को निरस्त नहीं कर पायेगा... और जबतक वो युद्धभूमि पर हे, ये भयानक संहार ऐसेही चलता रहेगा.
तब वो युद्धक्षेत्र से भाग निकलता हे... अर्जुन को युद्ध से भाग निकलता देख कर्ण भार्गावास्त्र को पीछे खीच लेता हे, पर जैसे ही पार्थ अपने शिबिर में जाता हे धर्मराज युधिष्ठिर जो की पहले ही कर्ण से हारकर शिबिर में लौटा था उसे लगता हे की शायद उनका छोटा भाई कर्ण का वध कर ही लौटा हे. वो बड़ी प्रसन्नता से उसके सामने जाता हे. पर जैसे ही उसे समजता हे की पार्थने युद्ध से भाग कर आया हे ... वो गुस्से से उसे कोसने लगता हे "अच्छा होता अगर तुम जन्म से पहले ही मर जाते, अच्छा होता की तुम अपना गांडीव अपने सारथी कृष्ण को दे दो, कम से कम वो तो कर्ण का वध कर देंगे"


जैसे ही युदिष्ठिर ने गांडीव की बात कही, अर्जुन गुस्से से लाल होगया और वो तलवार लेकर अपने बड़े भाई पर हमला करने लगा... तभी भगवन कृष्ण बिच में आ जाते हे.
अर्जुन ने ये कसम खायी होती हे की, अगर कोई उसे गांडीव को किसी दुसरे को सोम्पने को कहे तो वो उसका वध कर देगा... तब भगवन कृष्ण इसपर समाधान निकलते हे और कहते हे .. की अगर किसी पुण्यात्मा का तुम अपमान करो तो वो उसके वध के सामान ही होता हे... ये बात सुनकर अर्जुन अपने भाई को भलाबुरा कहकर अपमानित कर देता हे...

और बादमे खुद अपने आप को मरने लगता हे, तब फिर से भगवन कृष्ण उसे समझाते हे ... की तुमने जो किया वो अपने भाई के लिए किया इसकारण तुम इस के गुनेहगार नहीं हो... और अब ये मुर्खता त्याग दो ... अर्जुन तब अपने भाई के चरणों की शपथ खाता हे.. की वो कर्ण का वध करके ली लौटेगा ... और रथपर सवार होकर अर्जुन फीर युद्धक्षेत्र की और निकल पड़ता हे.
तो मित्रो अगर आपको हमारी कथा आई हो तो इसे like करे साथही कमेन्ट कर बताये आपके विचार.

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