हेमू और अकबर: पानिपत का दुसरा युद्ध १५५६ ! पानीपतमें ३ ऐतिहासिक युद्ध लडे गए थे, पहला युद्ध और तीसरा युद्ध तो सारी दुनिया को पता हे... पर इन दो पानीपत के युद्हो के बिच में, पानीपत का एक ऐसा युद्ध हुवा था ... जिसने भारत के इतिहास को एक अलग मोड़ दिया था ....आज हम बात करेंगे, विक्रमादित्य हेमू और मुग़ल सम्राट अकबर के बिच हुए पानीपत के दुसरे युद्ध के बारे में.

आपने हमारे, पानीपत के तीसरे युद्ध पर बने एपिसोड को काफी प्यार दिया, हम आपके आभारी हे.
बाबर जरुर १५२६ में भारत में अपना छोटासा राज्य बनाने में कामयाब रहा था, पर सिर्फ २० सालो के बाद बाबर की मृत्यु के साथ ही एक भारतीय राजा ... शेरशाह सूरी ने इस राज्य को बाबर के बेटे हुमायु को पराजित कर छीन लिया, शेरशाह एक काबिल राजा था.... इसीकारण शेरशाह की मृत्यु तक हुमायूँ को ईरान में निर्वासितो की तरह घूमना पड़ा, पर जैसेही शेरशाह की मृत्यु हो गयी.... हुमायु ने अपना सर फिर से उठाया और फिर से अपना राज्य बना लिया था  .... अगले १० सालो तक मुघलो के लिए सब कुछ ठीक जा रहा था... १९५५ आतेआते मुग़ल दिल्लीतक को हथिया चुके थे.
पर १५५५ आते आते, शेरशाह के वंशज आदिलशाह को एक महान सेनापति हेमचन्द्र मिल गया, जिसे लोकप्रिय साहित्य में हेमू कहा जाता हे. बादमे उसने अपने पराक्रम के कारन विक्रमादित्य की उपाधि लेली. आदिलशाह तो बस एक नामका शासक था, जो सिर्फ भोग-विलास करता था, असली शासन हेमू का था.
साल था, १९५६... कुछ सालो पहले दिल्ली पर शासन करने वाला सुर साम्राज्य अब सिर्फ बंगाल तक सिमट कर रह चूका था, इसी साल हुमायु की मौत हो गयी... १३ साल का अकबर अब कहनेको शासक था पर मुग़ल सेना की कमान अब बेहराम खान जैसे सेनापति के हाथ में थी ... बेहराम खान बाबर के काल से मुग़ल सेना में था, और युद्ध का काफी लम्बा अनुभव उसके साथ था.
हेमू ने परिस्थिति को समझा ... वो अब दिल्ली की और अपनी सेना के साथ चल पड़ा... लगातार २२ लड़ाईयोमे हेमू ने मुग़ल सेना को हराया .... इनमे से तुग़लकाबाद की लड़ाई महत्वपूर्ण भी शामिल थी थी, जब दिल्ली के नजदिक मुग़ल सेना के ४-४ कद्दावर सेनानी हेमू के सामने खड़े थे.... पर हेमू की आंधी के आगे कोई टिक नहीं पाया .... मुग़ल अब दिल्ली छोड़ कर भाग गए .... बेहराम खान अकबर को लेकर भाग खड़ा हुवा.

दिल्ली का शासक बनते ही हेमू ने अपने आप को महान भारतीय राजा "विक्रमादित्य" नाम की उपाधि से पुरस्कृत किया. एकतरह से ये अनौपचारिक राज्याभिषेक ही था.
हेमू अब मुघलो के पेड़ को जड़ से निकल फेंकना चाहता था, लाहोर जो अकेला हिस्सा अब मुघलो के कब्जे में था, उस एक हिस्से को भी हेमू अपने तले लाना चाहता था.
पर दिल्ली इस अफरा-तफरी में अकबर के एक सेनानी को By Luck जंगल से ले जा रही हेमू की पूरी की पूरी artillery यानी तोपे एक छोटीसी लड़ाई के बाद मिल गयी. अब हेमू के पास कोई तोपे नहीं थी, पर मुघलो के पास दोगनी तोपे थी.

5 नवम्बर १५५६, पानीपत
हेमू की सेना के आगे थी मुग़ल सेना, छोटासा अकबर अपने रक्षक बेहराम खान के साथ ८ मिल दुरी से युद्ध पर आँखे जमाये रख्खा था. युद्ध के शुरवाती घंटे में, मुघलो ने हेमू की सेना के हाथियों पर तोफोसे भारी हमला बोला, जिसकारण हेमू को अपने हाथियों को पीछे करना पड़ा .... साथ ही मुगलों ने एक अलग तरह की निति अपनाई.... उनकी टुकड़ी के हारे हुए सिपाही पीछे तो भाग जाते थे पर वो फिर अपनी नयी टुकडियो में शामिल होकर फिरसे हमला बोल देते...
अब मुग़ल सेना के दाए और बाए हिस्से आगे आये और मुख्य हिस्सा पीछे चला गया, जिस कारन हेमू का सेना का दल वास्तविक युद्ध में आ नहीं पाया ... हेमू की सेना के दाए और बाए हिस्से को आगे आना पड़ा ....

यहातक मुगलों का पलड़ा भारी था, पर अभी बहोत लड़ाई बाकि थी,
मुग़ल अपने केंद्र को हेमू से दूर रखना चाहते थे, हेमू ने अब अपनी रननिति का परिचय देते हुए.. अपने दाए और बाए की सेना को पीछे करना शुरू कर दिया, तब मुग़ल सेना के दाए बाए हिस्से जोश में आगे बदने लगे... इस कारन मुग़ल सेना का केंद्र अब सीधे हेमू के सामने था...
मुघलो की बिच वाली मुख्य सेना जिसमे टोपे और दूर से मार करने वाली सेनाये अब आगे आ गयी थी, इस डाव के कारन हेमू की दोनों बाजुए काफी कमजोर पद गयी देखने को लगने लगा था की मुग़ल सेना अब हावी होने लगी थी
पर हेमू अपनी मुख्य सेना को सीधे मुग़ल सेना के केंद्र पर ले गया, इस कारन कुछ पलो पहले थोडीसी बढ़त पाने वाली मुग़ल सेना अब pressure में आगई. साथ ही खुद हेमू अपनी सेना का नेतृत्व कर रहा था ... इसे बिच अब हेमू की दोनों बाजुए भी मुघलो पर टूट पड़ी और मुगलों की दोनों बाजु लगभग ख़त्म हो गयी.
मुघलो का केंद्र भी लगभग तबाह हो चूका था, मुगलों की सेना में चारो तरफ अफरा-तफरी थी.
अब हेमू की जित कुछ ही पलो के फासले पर थी... पर शायद नियति को कुछ और ही मंजूर था... कहीसे एक तीर आया, जिसने सीधा जाकर विक्रमादित्य हेमू के आंख को भेद दिया.... हेमू अत्यवस्थ अवस्था में रणभूमि पर गिर पड़ा....
हेमू के हाथी को पीछे लेजाने की बजाय माहुत आगे ले गया... और हेमू जिन्दा मुघलो के हाथ में पद गया.

हारा हुवा युद्ध अकबर जित गया था, अकबर को जब बेहराम खान ने हेमू का वध करने को कहा तो इस महान बालक ने ये कहकर मना कर दिया की "वो महान सेनापति हेमू को नहीं मारेगा"..
ये देखकर अकबर के रक्षक बेहराम खान ने, हेमू का मस्तक कलम कर दिया...
एक महान शासक का ये अंत था .... तो दुसरे महान शासक की ये शुरवात...!! अगर हेमू को वो बाण नही लगता तो ....??? क्या होता ... कमेंट करके बताये..
हेमू का इतना डर मुघलो के बीच था कि, कोई हेमू फिरसे पैदा न हो इस लिये, बेहराम खान ने हिंदूओ कि कई जगह genoside कराई, हेमू उसका कटा हुआ सिर काबुल के दिल्ली दरवाजा पर प्रदर्शन के लिए भेजा गया तो उसके धड़ को दिल्ली के पुराना किला के बाहर फांसी पर लटका दिया गया था ताकि हिंदू आबादी के दिलों में डर पैदा  हो. यहातक हेमू के ८० साल के पिता को भी नहीं बक्शा गया और इस्लाम न अपनाणे पर फांसी दि गयी. युद्धमें अपनी सेना का नेतृत्व खुद करना ये भारतीय राजाओ की वीरता एकतरह से मध्ययुगीन काल में मुढता साबित हुयी जबकि मुग़ल राजा काफी कम बार युद्ध में नेतृत्व करते थे... हम ऐसे कई युद्ध देखेंगे जहा जीता हुवा युद्ध भारतीय राजा पल में हार गये... पानीपत का तीसरा युद्ध हो या फिर उससे पहले हुवा विजयनगर साम्राज्य का अस्त ऐसेही कुछ उदहारण हे.

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