(कोंडाजी फर्जंद / Kondaji Farzand - जंजिरा किला जितने की महान कोशिश ) जंजिरा ... एक किला जिसे कहा जाता हे की कोई कभी जित नहीं पाया ...!!! पर इतिहास में एक ऐसा वक्त आया था... जब एक शेर इस किले से टकराया था ... इस टकराव से... जंजिरा... सरसे पैरोतक कांप उठा था...इस किले की हरएक इट थरथराई थी, सिद्धि काँप उठे थे.. आज के आर्टिकल में हम बात करेंगे इतिहास के उस रोमहर्षक कथा की जब कोंडाजी फरजंद (Kondaji Farzand) ने जंजीरा लगभग जीत ही लिया था ...!!
Janjira and Kondaji Farzand
Kondaji Farzand attempt to conquest Janjira

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जंजिरा का निर्माण सिद्धि ने किया ?? झूट हे (Janjira Kisne Banaya?)

बात हे १६८१ की ...!! अफ्रीका से आई एक जमात सिध्ही जिन्होंने जंजिरा किले को अपना ठिकाना बना रख्खा था, और यही से .... वे आणे-जाणे वाले जहाजो की लुट करते थे, सिद्धी एकतरह के समुद्री लुटेरे थे. जंजीरा किले के संबंध के एक गलतफहमी काफी फैलाई जाती हे, की मालिक अम्बर ने इस किले का निर्माण किया.. यहातक विकिपेडिया जैसे ठिकानो पर भी आप को यही बताया जायेगा.. और अगर आप इस किले पर जायेंगे तो आपको ये बताया जायेगा कि इस किले का निर्माण सिद्धी जौहर ने किया हे...जो भी पुरी तऱह से गलत हे.... असलीयत मे मुरुड के राम पाटिल नाम के एक कोली प्रमुख ने(राम पाटिल के पूर्वजो ने किया था, पर इतिहास में पहला स्पष्ट उल्लेख राम पाटिल के नाम का मिलता हे, और राम पाटिल और मालिक अम्बर की लड़ाई के भी दाखले मिलते हे, जिनमे राम पाटिलने विशाल आदिलशाही फ़ौज को हराया था) या संभवतः उनके पूर्वजो ने जंजिरा का निर्माण ११ वि शताब्दी मे किया था.
"मुरुड के राम पाटिल नाम के एक कोली प्रमुख ने या संभवतः उनके पूर्वजो ने जंजिरा का निर्माण ११वि शताब्दी मे किया था जिसे मेढेकोट कहा जाता था"
बात तब की जब मलिक अम्बर निजामशाही का सरदार था. उसने जंजिरा को देखा और उसने उस समय उसका महत्त्व जाना पर जब उस ने जंजीरा को जितने की कोशिश की थी तब इस कोली सरदार राम पाटीलने अपने साथीयो के साथ हजारो कि विशाल निजामशाही फौजों को जंजिरा के बाहर रोक रख्खा,..हराया था. मालिक अम्बर ने इस किले को जितने के लाखो प्रयास किये पर वो उसे जित नहीं पाया. तब मालिक अम्बरने धोकेबाजी का रास्ता चुना, वो दोस्त बनकर इस किले में घुसा और राम पाटिल के साथ धोका कर मालिक अम्बर ने जंजीरा पर कब्ज़ा कर लिया.

janjira fort arial


जंजीरा और सिद्धी रिश्ता (Janjira aur Siddhi)

मालिक अम्बर इक हब्शी था... और उसी के बाद से यहाँ हबशी जमात सिध्ही का बसेरा हो गया.
जंजिरा किले का निर्माण काफी खूबी से किया गया था, समुन्दर में एक island पर बने इस किले का दरवाजा तब तक नजर नहीं आता जब तब आप इसके काफी करीब नहीं जाते. और इसी कारन इस किले को भेदना आजतक मुमकिन नहीं हो पाया. किले और किनारे के बिच में फैला समुन्दर किले की दीवारों को और भी मजबूत बना देता हे. और जो किला पहले लकडियो का बना था उसे मिटटी के दीवारों से फिर बना देता हे. पर कोलियो द्वारा की गयी engieering वाही रख्खी गयी. और बाहरी ढांचा, दरवाजे का छुपे रहना ये साड़ी खूबिया भी पहले जैसी ही रख्खी गयी. 

छत्रपति संभाजी महाराज और जंजीरा (Janjira aur Chh. Sambhaji)

१६८१मे, छत्रपति संभाजी महाराज २० हजार की सेना लेकर जंजीरा की मोहिम पर निकल पड़े, पर जंजिरा भी अजेय किला था... छत्रपति संभाजी महाराज को ये समझ में आ गया की जंजिरा को सीधे मुकाबले में लेना काफी मुश्किल हे. तब बुलाया गया कोंडाजी फर्जंद को, संभाजी महाराज ने कोंडाजी को कहा की "किसी भी हालत में, जंजीरा.. हिन्दवी स्वराज्य का हिस्सा होना ही चाहिये"
सुबह, ये खबर हवा की तरह फ़ैल गयी की, जंजिरा न जितने की वजह से महाराज और कोंडाजी में बिगड़ गयी हे... उसी समय जंजिरा के समुन्दर में ६-७ छोटी नौकाये किले कि तरफ जा रही थी...
कोंडाजीने अपने भरोसेमंद १०-१ लोगो को लिया था... और वो सीधा सिध्ही से हाथ मिलाने गया था...
sambhaji maharaj and janjira

कोंडाजी फरजंद और जंजिरा (Kondaji Farzand Aur Janjira)

कोंडाजी ने सिध्धी की सेवा करने की याचना की, अपनी छत्रछाया में लेने के लिए कहा. कोंडाजी के शौर्य के बारे में सिध्धी को भालीभाती पता था. और ऐसे सरदार को वो किसी भी हालात मे खोना नहीं चाहता था... और उसने कोंडाजी को अपनी सेवा मे ले लिया.

सिध्धी की सेवा में जंजीर में, कोंडाजी के दिन... हफ्ते गुजर रहे थे... साथ में लाये १०-१५ लोग भी अब जंजीर की दिनचर्या से आदि हो चुके थे. कोंडाजी सिध्धी को पूरा यकीं हो इसलिए अपनी पत्नी को भी साथ ले गया था. "जंजीरा के सारा गोलाबारूद, एक रात में तबाह कर उसे शम्भू-महाराज की चरणों में अर्पण करने की योजना थी कोंडाजी की"

"जंजीरा के सारा गोलाबारूद, एक रात में तबाह कर उसे शम्भू-महाराज की चरणों में अर्पण करने की योजना थी कोंडाजी की"
सब कुछ सटीकता से हो रहा था....वो दिन या ठीक से कहे तो वो रात भी आ गयी जब कोंडाजी सारा गोलाबारूद नष्ट करनेवाला था, किसीको कानोकान खबर न थी, सरी सुरंगे बिछा दी गयी थी, अब कुछ ही पलो में जंजिरा महान मराठा साम्राज्य के सामने पस्त होने वाला था. वो मराठा साम्राज्य का अभिन्न हिस्सा होने वाला था. सिद्धि के संसाधनों का विनाश कुछ पलभर की दुरी पर था. कोंडाजी अपनी पत्नी और साथियों को लेकर नौकाओमें बैठनेही वाला होता हे, की कोंडाजी की पत्नी ने अपनी नौकरानी को साथ लेने की जिद पकडती हे दासी को सब बात जैसे ही पता चली वो  सीधे सिध्धी को बता दी. (नोट- इतिहास के अनुसार सिद्धि को अंतिम क्षण पर खबर मिल जाती हे, पर महाराष्ट्र की लोक-कथा और पोवाडा में दासी द्वारा इस बात को बताये जाना कहा जाता हे).
एक नादान हठ के कारन सारे मराठा योद्धा जंजीरा पर खून की होली खेलते हुए मारे गए... कोंडाजी फरजंद भी उन्ही मेसे एक थे.


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