१७६१... पानीपत में भयानक नरसंहार चल रहा था, विश्वासराव के मारे जाने से युद्ध का स्वरुप ही बदल गया था.. मराठे हार रहे थे... युद्ध की परिस्थितियों को देख कर एक ३०-३१ साल का नौजवान घायल हालत में अपनी बची सेना और प्रतिशोध कि अग्नी के साथ अपने राज्य की तरफ निकल पडा...उस शेर कि तऱह जो चार कदम पीछे जाता हे... बड़ी छलांग लगाने के लिए... आज के एपिसोड में हम बात करेंगे दिल्ली पर राज करनेवाले मराठा योद्धा महादजी सिंधिया के बारे में.
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पानिपत के बाद- Rise Of Nana Fadanavis and Mahadaji Scindhia

पानीपत का युद्ध मराठा साम्राज्य के लिए एक काली रात जैसे था, जिसने पेशवा नानासाहब, सदाशिवभाऊ और होनेवाले पेशवा विश्वासराव को निगल लिया. साथ ही रघुनाथराव जैसे कपटी इन्सान का खेल शुरू कर दिया था.  पर जिस तरह काली रात हे बाद हसीं सुबह होती हे, उस तरह माधवराव पेशवा, महादजी सिंधिया और नाना फड़नविस इन तीनो ने मिलकर मराठा साम्राज्य को वो स्वर्णिम ऊंचाई दिला दी, जिसकी कामना उसने अतीत मे कि थी.
Mahadaji Scindhia - Maratha

सिंधिया घराने के प्रमुख जनकोजी शिंदे पानीपत के युद्ध में आखिरतक लड़ते रहे. पानीपत युद्ध के ७ साल बाद ग्वालेर के घराने के प्रमुख बने महादजी सिंधिया. पानीपत युद्ध के बाद, उत्तर भारत अशांतता का गड बन चूका था.. प्लासी युद्ध की जित के बाद अंग्रेज अपनी हुकूमत दिल्लितक लाना चाहते थे...१७६४ के बक्सर युद्ध के बाद उन्होंने वैसा किया भी और मुग़ल बादशाह को अपना गुलाम बना लिया... पर उनके लिए दिल्ली अभी काफी दूर थी... अंग्रेज और दिल्ली के बिच ग्वालियर था और वहा पर थे महादजी सिंधिया. १७७१ में महादजी ने दिल्ली और दिल्ली के मुग़ल बादशाह को अपने पैरोतले ला दिया. अब दिल्ली का पत्ता-पत्ता भी मराठो की इजाजत के बिना हिल नही सकता था, मुग़ल बादशाह भी नही.जिस नजीब और रोहिलो ने पानीपत में हिन्दवी स्वराज्य के खिलाफ सर उठाया था, उसे ख़त्म करने की कोशिश की थी उनके सर महादजी ने कुचल दिए. मराठा साम्राज्य अपने चरम पर था.

मराठा अंग्रेज युद्ध- वडगाव : महादजी शिंदे का नेतृत्व

पर पानीपत के युद्ध के बाद एक सांप पुणे में पल रहा था... नाम था रघुनाथराव और वो लगातार मराठा साम्राज्य को डसने की कोशिश करता रहा, पेशवा माधवराव के होते हुए भी और उनके बाद भी,...  पर हद तो तब हुयी जब १७७१ में माधवराव पेशवा की बीमारी से मृत्यु होगई, और उनके भाई नारायणराव के... पेशवा बनने के बाद रघुनाथराव ने नारायणराव का क़त्ल करवाया.. पर फिर भी रघुनाथराव को मराठा साम्राज्य का पेशवा नही बनाया गया और छोटेसे सवाई माधवराव को पेशवा बनाया गया, तब रघुनाथराव बोखालाकर अंग्रेजो के साथ मिल गया.
Mahadaji Scindhia- दिल्ली पर हुकुमत चालाने वाला मराठा

जानेवारी १७७९, वडगाव
अंग्रेजोने मुंबईसे अपनी फ़ौज मराठाओ के ऊपर भेज दी ३,९०० ब्रिटिश कर्नल एगर्टनच्या की कमान में पुणे की तरफ निकल पड़े साथ में थी रघुनाथराव की फ़ौज. इन्हें हराने का जिम्मा था महादजी सिंधिया और तुकोजी होलकर इनपर, इन दोनोंने अंग्रेजो की सेना को काफी धीमा कर दिया, यहातक की अंग्रेज जिस कुए में पानी पिने जाते वो जहरीला होता था, अंग्रेजो की सेना खाना और पानी दोनों के लिए तरस रही थी. १२ जनवरी १७७९, रातमें महादजी सिंधिया ने नेतृत्व में हमला कर ब्रिटिशो को पूरी तरह से पराजित कर दिया. महादजी शिंदे इनकी वीरता सिर्फ एक युद्ध से बताई नहीं जा सकती, युद्ध के समय उनकी समशेर जितनी तेज थी उससे कई ज्यादा शांति के समय उन्ही बुद्धि तेज. उन्होंने हैदराबाद के निजाम को हरा कर उसे उत्तर भारत की सियासत से तोड़ दिया. धर्मांध टीपू का अंत करने की लिए निज़ाम, मराठे और अंग्रेज इन तीनो के अतुट गटबंधन में महादजी की भूमिका काफी महत्वपूर्ण थी. अंग्रेजो को भी ये पता था, की उत्तर भारत हो या दक्षिण भारत महादजी के होते हुए वो वे कही भी मराठो से दुश्मनी नहीं ले सकते थे. महादजी शिंदे और नाना फड़नवीस ये दोनों मराठा साम्राज्य के दो बेहतरीन रत्न, दोनों में मतभेद जरुर थे पर दोनों इतने सुजान थे की इन मतभेदों को उन्होंने कपट में कभी परिवर्तित नहीं होने दिया और एक महान साम्राज्य को मूर्त स्वरुप दिया जिसने भगवा ध्वज दिल्ली में लहराए रख्खा था.
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