रामायण के वानर थे इन देवताओ के अवतार
(रामायण के वानर थे इन देवताओ के अवतार) आप सभी तो जाणते ही होंगे कि भगवान राम और भगवान कृष्ण ... भगवान विष्णू द्वारा लिये पृथ्वी पर लिए अवतार थे. पर आपमेसे बहोतसे लोग ये नही जाणते होंगे कि भगवान श्रीराम कि सेना के भाग बने अनेको वानर किसीना किसी देवता के अवतार या पुत्र(अंश) थे... आजके आर्टिकलमे हम इसी बारे मे बात करेंगे.नमस्कार मित्रो स्वागत हे आपका मिथक टीवी वेबसाइट मे, अगर आपको हमारे आर्टिकल्स पसंद हे तो हमे Follow करणा न भुले.
राक्षसराज रावण और ब्रह्माजी का वरदान
रामायण मे हुवा प्रभू
श्रीराम और राक्षसराज रावण का युद्ध त्रेतायुग का एक महाभयंकर युद्ध था. रामायण के शुरवात में राक्षसराज रावण ने
भगवान ब्रह्मा कि तपस्या कर उन्हे प्रसन्न कर लिया. और तब रावण ने भगवान
ब्रह्मा से ये वर प्राप्त था "कि उसका वध कोई भी देवता, यक्ष, गंधर्व या फिर नाग न कर
सके". इस वरदान के बाद रावण
महाशक्तिशाली हो गया था, क्योकी कोई भी देवता यश, किन्नर या फिर गन्धर्व उसे मार नाही सकता थे. और सामान्य मनुष्यसे वो काफी
ताकदवर था, की वो उसे मार सके. इस बात को जानकर रावण अपनी शक्ती मे मदमस्त हो गया था.
श्रीरामावतार और देवताओ के पृथ्वीपर अवतार
रावण का वध मनुष्य के हाथो तय होने की वजह से भगवान विष्णू ने प्रभू श्रीराम के रूप मे अवतार लिया. भगवां विष्णु के साथ ही अनेको
देवताओने भी इस महान युद्ध में भाग लेने हेतु वानररूप मे पृथ्वी अवतार या पुत्ररूप मे अपने अंश को पृथ्वी पर उतारा था....
सभी देवताओ का पृथ्वीपर अवतार लेने का वर्णन रामायण के बालकांड मे मिलता हे.
माता सीता के रुपमे माता
लक्ष्मी ने अवतार लिया था तो भ्राता लक्षमणजी के रूपमे शेषनाग ने अवतार लिया था तो
भरत रूप मे भगवान विष्णू के शंख ने और शत्रुघ्नरूपमे सुदर्शन चक्र ने अवतार लिया
था. साथ ही ब्रह्माजी जब जम्भाई
ले रहे थे उससे जांबवंतजी का जन्म हुवा था, जो रामसेना मे सबसे ज्यादा वृद्ध
व्यक्ती थे.
सूर्यदेव ने सुग्रीव नामक
पुत्र को उत्पन्न किया था तो इंद्रदेव ने बाली को. देवताओ के गुरु ब्रहास्पतीने
तार नामक एक विशाल वानर को उत्पन्न किया था. भगवान विश्वकर्मा ने नल नामक वानर को
उत्पन्न किया था तो कुबेर का पुत्र गंधमादन नाम का वीर वानर था. नल के साठी नील नाम के वानर
को अग्नीदेव ने उत्पन्न किया था, अश्विनी कुमारो ने मैन्द और द्वीविद नाम के वानरो
को जन्म दिया था. सुशेन वरुणदेव का तो शरभ पर्जन्यदेव के पुत्र थे. और भगवान हनुमान जी पवनदेव
के पुत्र थे. इसिप्रकार कई यक्षो गन्धर्वो ने अपने अंश को इस महायुद्ध मे सहभागी
होणे के लिये निर्माण किया था.
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