छत्रपती शिवाजी महाराज...!! पूरी दुनिया के सर्वकालीन महान राजाओ मेंसे एक. आज हम इन्ही की एक लड़ाई के बारे में जानेंगे जो ज्यादातर लोगो को पता नहीं हे. इस लड़ाई को कुछ महीने पहले ३५० से भी ज्यादा साल पुरे हो चुके हे. उम्बरखिंड की लड़ाई के बारे में.
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शाहिस्तेखान का आक्रमण

बात तब की हे, जब छत्रपती शिवाजी महाराज के बनाये हिंदवी स्वराज्य पर दो महासत्ताये मोगल और अदिलशाह का सरदार सिद्धी जौहर टूट पडे थे. कहाणी कि शुरुवात तब होती हे जब...!
महाराज पन्हाळा नाम के किले पर थे आदिलशाह का सरदार सिद्धी जौहर ने इस किले कि नाकाबंदी कर रख्खी थी, उसी समय मोगलो का बडा सुभेदार शायिस्तेखान औरंगाबाद से हिंदवी स्वराज्यपर आक्रमण कर देता हे. दोनो से एक साथ लडना किसी आत्महत्या से कम न था.. तब शिवाजी महाराज ने अपने गुप्तचरो से ये बात फैलादी कि सिद्धी जौहर शिवाजी से मिला हुवा हे... उन्होने ये इंतजाम भी किया कि ये खबरे सीधे आदिलशाह तक पुहच जाये. इस दौरान शिवाजी महाराज सिद्धी को चकमा देकर पन्हाळा से निकल गये. अब आदिलशाह का शक यकीन मी बदल चुका था.... इसी के चलते उसने आगे सिद्धी जौहर को जहर देकर मार डाला. आगे मोगल और आदिलशाही किभी पिरंडा किले कि वजह से बिगड़ गउधर शायीस्ताखान पुणे मे आ चूका था, पुणे आतेही उसने पासही के चाकन के एक छोटीसी गढ़ी पर नजरे जमाई. शायीस्ताखान को लगा कि वो २-३ दिनो मे इस किले को जीत लेगा, पर फिरंगोजी नरसाळा के नेतृत्व मे मराठो ने २ महीनो तक उसे छोटेसे किलेमे घुसणे नही दिया.
Battle Of Umberkhind

कार्तलब और उम्बरखिंड

शयिस्ताखान के पास कार्तलब नाम का एक धुरंधर सरदार था जो मूल उजबेकिस्तान का था, कोंकण में हिन्दवी स्वराज्य को खात्म करने हेतु उसने कार्तलब को बडी सी सेना देकर कोंकण पर आक्रमण करने के लिए भेज दिया. कार्तलब रणनीती में माहिर था, उसने ये दिखाया की वो लोनावला से जाते हुए कोंकण के पनवेल शहर पर हमला करेगा, शिवाजी महाराज ने भी ये दिखाया की उन्होंने अपनी सेना का जमावड़ा पनवेल के करीब किया हे.... उन्होंने ये भांप लिया था की कार्तलब अब surprize attack करने के लिए रास्ता बदलेगा. और हुवा भी ठीक वैसाही कार्तलब ने राह में उसने रास्ता बदल कर तलेगाव, मलावली से फैले हुए घनदाट जंगल कुर्वंडा से जाने लगा, शिवाजी महराज के गुप्तचरोने पहले ही ये बाद उनतक पुहचा दी थी. कुर्वंडा घाट से २ मिल दूर एक गाव हे, और यहाँसे ये घाट आगे एक मिल तक काफी narrow और साथही slopy हो जाता हे, इतना की सेना को कतार बनानी पड़े.... दोनों और से ऊँचे पहाड़.... इस एक मिल की जगह को कहते हे उम्बरखिंड.

२ फेब्रुअरी १६६१- उम्बरखिंड की लड़ाई 

दिन था १ फेब्रुअरी १६६१,छत्रपति शिवाजी महाराज ने १००० चुनिन्दा लोग चुने, और दोपहरतक वे उम्बरखिंड पुहच गए और उन्होंने वह ऊपर पहाड़ोपर अपना निशाना जमाया ... जहा से वे खान की फ़ौज पर आसानी से हमला कर सकते थे.
२ फेब्रुअरी १६६१, इस सब से अनजान मुर्तालाब अपनी ३५००० फ़ौज के साथ उम्बरखिंड उतरने लगा, आधा रास्ता तय करने तक सबकुछ ठीक था....पर अचानक ऊपर से पत्थर, तीर और न जाने क्या क्या गिरने लगा, मोगलो को लगा शायद क़यामत आ गयी हे.... मराठो का राजा शिवाजी क़यामत से कम थोड़ी ही था...जंग छिड़ गयी ये कहना गलत होगा .... ऊपर से पड रहे पथ्थरो से मुगल कुचले जा रहे थे... तिर उनके सिने को चिर रहे थे .... मुगलों ने सोचा पीछे भागते हे....पर पीछे से भी मराठो ने रास्ता बंद कर रख्खा था.... कार्तलब के पास अब सिर्फ एक ही उपाय था... और उसने वही किया... उसने छत्रपति शिवाजी महाराज के पैर पकड लिए .... शिवाजी महाराज ने कार्तलब से कुछ संधी कर उसे छोड़ दिया. उम्बरखिंड की लढाई रणनित और गुप्तचरो का सर्वोत्तम नमूना हे, इस युद्ध में ५० मराठे तो १००० से भी ज्यादा मुग़ल मारे गए. अगर आप एक बात पर गौर करेंगे की आप इतनी अचूक रणनीति जिनमे किसी एक पक्ष की क्षति न के बराबर हुयी हो ऐसी लडाईया छत्रपति शिवाजी महाराज के बाद.... अगले १०० साल तक देखने को नही मिलती .... हाँ अंग्रेजो ने ऐसी लडाईया जैसे की बक्सर और अर्काट की लडाईया जीती जरुर पर वे रणनीति से ज्यादा आधुनिक शस्रो के बूते जीती.
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