कहाणी गौतम बुद्ध और देवदत्त की | कई शतको पहले की बात हे,
इसाई धर्म के लोग धर्मप्रसार हेतु थाईलैंड पुहचे थे, थाईलैंड में तब बौद्ध धर्म का
पालन किया जाता था.. इसाई मिशनरीज ने अपने गले में क्रॉस पर चढ़े इसा मसीह के चित्र
को धारण किया था... पर थाईलैंड के राजा और लोग उस चित्र में बने येशु को कोई और ही
समझ बेठे थे... उन्होंने येशु के जगह जिस इन्सान की पहचान की थी वो भी कम साधारण
नहीं था... इन्सान जिसने गौतम बुद्ध के सामने चुनोती प्रस्तुत की थी ... जो चाहता
था की बुद्धिस्त monk कोई भी सुख न लेकर एक कठिन और साधारण जीवन व्यतीत करे... उस
व्यक्ति का नाम था देवदत्त, आज के article में हम बात करेंगे गौतम बुद्ध और देवदत्त
की कहानि की.
थाईलैंड के राजा और लोगो ने सूली पे चढ़े येशु को... अपनी जिंदगीभर गौतम बुद्ध से शत्रुता करने वाले देवदत्त के रूप में देखा, और इसाई धर्म को देवदत्त के followers द्वारा बनाया धर्म समझा था.
थाईलैंड के राजा और लोगो ने सूली पे चढ़े येशु को... अपनी जिंदगीभर गौतम बुद्ध से शत्रुता करने वाले देवदत्त के रूप में देखा, और इसाई धर्म को देवदत्त के followers द्वारा बनाया धर्म समझा था.
देवदत्त और सिद्धार्थ बचपन-
सिद्धार्थ और देवदत्त, एकदूसरे के चचरे भाई थे. दोनों ही कमाल के होशियार और महान और असाधारण प्रतिभा के धनी. पर एक कोमल स्वभाव का..! अहिंसा पर विश्वास करनेवाला, तो दूसरा उग्र स्वभाव का और जरुरत पड़नेपर हिंसा का सहारा ले जाना चाहिए ऐसा माननेवाला.
बात तब की हे जब वे दोनों
छोटे थे, एक दिन सिद्धार्थ और देवदत्त जंगल में जा रहे थे, तो पास से एक हंस उड़
रहा था.. देवदत्त ने तीर कमान में लगाया और हंस पर निशाना साधा दिया... कुछ क्षणों
बाद घायल हंस जमीन पर पड़ा हुवा था. सिद्धार्थ ने जाकर उस हंस को उठाया.. उसके जख्म
को साफ़ किया, और जबतक वो ठीक नहीं होता तब तक उसका खयाल रख्खा.
बात तब की हे, तब सिद्धार्थ
गौतम बुद्ध बन चुके होते हे, और देवदत्त भी बुद्ध संघ में शामिल होता हे, शुरवात
के १५ सालो तब वो इस बहोत अच्छा monk साबित होता हे, वे अपनी कठोर साधना से अलौकिक
शक्तिया भी प्राप्त कर लेता हे. पर जैसा की उसके स्वभाव में था.. वर्चस्व ...!! वो
बुद्ध संघ का प्रमुख बनाना चाहता था, पर गौतम बुद्ध ऐसा करने से मना कर देते हे.
देवदत्त और गौतम बुद्ध कि दुष्मनी
मगध के राजकुमार अजातशत्रु... देवदत्त के चाहनेवालो मेसे एक थे. देवदत्त उनके साथ मिलकर गौतम बुद्ध को मारने की योजना बना देता हे और कुछ हत्यारों को गौतम बुद्ध को मारने के लिए भेज देता हे.(योजना ये थी के, एक हत्यारा गौतम बुद्ध को मारेगा, २ और हत्यारे उसे मारेंगे.. उन दोनों को ४ तो उन चारो को ८ हत्यारे मारेंगे) पर वे हत्यारे गौतम बुद्ध के followers बन जाते हे. कहा तो ये भी जाता हे कि अपने पिता बिम्बिसार को मारणे कि योजना अजातशत्रू ने देवदत्त के कहने सेही बनाई थी.
दूसरी बार, देवदत्त एक
बड़ेसे पहाड़ पर चढ़ जाता हे, और जब गौतम बुद्ध वहा निचे से जाने लगते हे तब वो ऊपर
एक बड़े पत्थर को निचे फेक देता हे... पर वो पत्थर भी गौतम बुद्ध का कुछ नहीं बिगड़
पाता, और सिर्फ गौतम बुद्ध के पैर पर एक जख्म कर देता हे. (पली ग्रन्थ पिटिका के
अनुसार एक पत्थर दुसरे पत्थर से टकराएगा दूसरा तीसरे से ... और ऐसी एक शृंखला के
बाद आखरी पत्थर गौतम बुद्ध पर ऐसी योजना थी ...)
तीसरी बार, देवदत्त निलगिरी
नाम के एक हाथी को शराब पिलाकर गौतम बुद्ध पर छोड़ देता हे, पर जैसे ही वो हाथी,
बुद्ध के पास पुहचकर उन्हें रौंद देने वाला होता हे. तब वो अचानक शांत हो जाता हे.
तब देवदत्त बुद्ध संघ में विभाजन
करवा देता हे, ५०० बुद्धिस्त monks के साथ वो अपनी विचारधारा की शुरवात करता हे,
पर बादमे गौतम बुद्ध के शिष्य मोग्गालना इस नए संघ को विभाजित कर बहोतसे monks को
पुराने संघ में शामिल करते हे.
कहानियो के बाद कि बात
पाली ग्रंथो के मुताबिक,
देवदत्त को अपने किये का पश्तावा हुवा था, और जब वो बुद्ध की शरण में आने निकला था
तब उसे धरती निगल गयी. कूच ग्रंथो के अनुसार वे
किचड से भरे तालाब में फ़साने से मरे थे. पर चीनी प्रवासी ह्यून सांग
७ वि शताब्दी में भारत आया था तो उसे बंगाल में देवदत्त के बहोत से ठिकानो पर followers
मिले थे. और थाईलैंड में भी ये मान्यता थी की देवदत्त ने एक अलग बौध धर्म बना लिया
हे और इसी धर्म को समझकर उन्होंने इसाई मिशनरियो का काफी विरोध किया था. इस बात से
ये साबित होता हे की, देवदत्त की बनायीं बौध धर्म की शाखा उसके मृत्यु के पश्च्यात
१००० सालो तक जीवित थी.
आपको कहाणी गौतम बुद्ध और देवदत्त की कैसी लगी हमे जरूर कमेंट कर बताये.
अन्य लेख- येशू मसिह का मृत्यू कश्मीर, भारत मे हुवा था ...?
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