साल था १६४५, पुणे से नजदीक लगभग ५००० फिट ऊंचाईपर रायरेश्वर का स्वयंभू शिवलिंग हे. उस दिन कुछ १५-१६ साल के लड़के रायरेश्वर के दर्शन लेने आये थे. उन्होंने रायरेश्वर को साक्षी मानकर कसम खाई .... वो कसम थी हिन्दू राष्ट्र निर्माण की .... हिन्दवी स्वराज्य के निर्माण कि ...
छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके साथी, सब महज १६-१७ साल के लड़के थे..! सभी राष्ट्रनिर्माण से प्रेरित थे. इन लडको में एक कोंकण के महाड के पास रहनेवाला एक लड़का भी था, उसने भी पुरे दिल से इस कसम पर चलने की ठान ली थी... और बाद में जब भी वक्त आया तो वो उसपर खरा साबित हुवा... और अंत में हिन्दवी स्वराज्य के लिए उसने अपने प्राणों की आहुति तक डे दी...!!
उस लड़के का नाम था तानाजी ... आज के एपिसोड में हम बात करेंगे शेरदिल तानाजी मालुसुरे की.
नमस्कार मित्रो स्वागत हे आपका मिथक टीवी मे, इतिहास और प्राचीन भारत से जुडी कहानियो के लिए हमे जरुर follow करे.
आनेवाले दशको में तानाजी ने छत्रपति शिवाजी महाराज का जी-जानसे साथ दिया. कई लडाईया लड़ी... जीती, पर सिंहगड जिसका तब का नाम कोंडाणा था... की लड़ाई उनकी जिंदगी का और शायद हिन्दवी स्वराज्य का परमोच्च बिंदु था.
Tanaji Malusare- story of sinhagad

"आधी लगीन कोंडाण्याच मग रायबाच"

साल था १६७०,
रायरेश्वर की शपथ को पुरे २५ साल बित चुके थे, पर तानाजी मालुसरे के लिए उस शपथ के शब्द इतने साफ़ थे... कि जैसे वो कल-परसों ली गयी हो...महाराष्ट्र में पुणे के नजदीक एक किला था ...कोंडाना. १९६५ के पुरंदर के तह के कारन मराठो को ये किला मुघलो को देना पड़ा था. पर शिवाजी महाराजजी के मन में कोंडाना किले को फिरसे स्वराज्य में मिलाने की ख्वाइश थी.तानाजी के लड़के रायबा की शादी तय हुयी थी, तानाजी बड़े आनंद से न्योता देने महाराज के पास आया. तब महाराज ने तानाजी मालुसरे को कहा "आप हमारे लिए कोंडाना जीतिए".  तब तानाजी ने कहा "जरुर महाराज, पहले शादी कोंडाना की, फिर रायबा की" और शेरदिल तानाजी निकल पडा कोंडाना की तरफ.

कोंडाणा(सिंहगड) और तानाजी मालुसरे

तानाजी मालुसरे

कोंडाना एक महत्वपूर्ण strategic location पर था, मुघलो को भी अपने इस किले का महत्व भलीभाती पता था. इसीलिए कोंडाना पर थे.. ५००० से ज्यादा सिपाही और एक वीर राजपूत उदयभान उनका सरगना था.
किले में घुसना लगभग नामुंकिन था. पर जमीन से जुड़े तानाजी ने घोरपड नाम के जानवर का इस्तेमाल किया... इस प्राणी की एक विशेषता ये हे की अगर ये दीवार या पेड़ से चिपक जाये तो बैल भी इसे निकल नहीं सकता. तानाजी ने यशवंती नाम की घोरपड से रस्सी बाँध दी और उसे किले की उस दीवार पर फेंक दिया, जहा सिपाही नहीं थे ... पहले दो प्रयासों में घोरपड चिपक नहीं सकी, पर जब तीसरी बार घोरपड किले की दीवार के ऊपर चढ़ गयी, तब तानाजी ने खींचना शुरू किया तो घोरपड दीवार से दम लगा कर चिपक गयी.
तानाजी और बाकि ३०० मराठा योद्धा उस रस्सी से लटककर ऊपर चढ़ गए.
ऊपर चढ़ते ही 'हर हर महादेव' के जयजयकार के साथ मुघलो पर ऐसा घातक हमला हुवा की वो समझ ही नहीं पाए. उन्हें लगा बहोत बड़ी फ़ौज किले में घुस गयी हे. कुछ मराठा योद्धाओ ने किले के दरवाजे खोल दिए... बाहर तानाजी का भाई सूर्याजी ५०० योद्धाओ के साथ था ... सूर्याजी के आने के बाद जैसे मुघलो पर कहर टूट पड़ा.

Tanaji Malusare story

मुघल मारे जा रहे थे ... काटे जा रहे थे...
तानाजी उदयभान की तरफ गए. दोनों के बिच एक घनघोर युद्ध शुरू हुवा... तानाजी तो महावीर था ही पर उदयभान भी कम नहीं था. युद्ध में तानाजी की ढाल टूट गयी फिर भी कपडे को हाथपर बांध तानाजी लड़ता रहा. दोनों में आर-या-पार की प्रनान्तक लड़ाई चल रही थी. कोई किसी से कम न था... आखिर तानाजी ने उदयभान को मार दिया पर जानलेवा जख्म होने के कारन एक महान वीर तानाजी वीरगति को प्राप्त हुए.
किला तो ले लिया गया पर शेर मारा गया था... जब छत्रपति शिवाजी महाराज को ये बात पता चली की तानाजी मारा गया हे तो वो दुःख से बोले "गड आला पण सिंह गेला" यानी किला तो आया पर शेर गया ....
तब से कोंडाना का नाम .... तानाजी के नाम पर सिंहगड रखा गया.
नामुनकिन को मुंकिन कर देने वाला शेरदिल योद्धा तानाजी मालुसरे को मिथक टीवी का नमन...!!
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